पंडित गोविंद बल्लभ पंत जी के जन्मदिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से श्रद्धांजलि दी गई
अलीगढ़ 10 सितम्बर मनीषा ।मा0 विधायक सदर श्रीमती मुक्ता संजीव राजा द्वारा चिरंजीलाल कन्या इंटर कॉलेज में भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पंत जी के 137 वें जन्मदिवस पर आयोजित कार्यक्रम में उनके चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित किए गए। मा0 विधायक ने कहा भारत रत्न स्व. पंत जी एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, देशभक्त, समाजसेवी व कुशल प्रशासक थे। पंडित जी ने देश को नई दिशा देने के साथ ही कुली, बेगार प्रथा और जमींदारी उन्मूलन के लिए निर्णायक संघर्ष कर समाज में व्याप्त बुराईयों को दूर करने में अहम भूमिका निभाई। श्री पंत जी का हिंदी को राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित कराने व उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री एवं देश के गृहमंत्री रहते हुए आधुनिक भारत के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। उनका संघर्षशील एवं प्रेरणादायी नेतृत्व देशवासियों के लिए सदा प्रेरणा का स्रोत रहेगा। उन्होंने बताया कि देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पंडित जी0बी0 पंत का जन्म 10 सितंबर, 1887 को अल्मोड़ा जिले के खूंट गांव में हुआ था। प्रारंभिक पढ़ाई करने के बाद गोविंद बल्लभ 1905 में अल्मोड़ा से इलाहाबाद आ गए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की और काशीपुर में वकालत शुरू कर दी। उस दौरान कांग्रेस पार्टी ने स्वतंत्रता सेनानी-क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और काकोरी मामले में शामिल अन्य क्रांतिकारियों के मुकदमे की पैरवी के लिए उन्हें वकील नियुक्त किया। 1914 में उन्होंने अंग्रेजी शासन के खिलाफ आंदोलनों में हिस्सा लेना शुरू किया। आजादी के आंदोलनों में भाग लेने पर अंग्रेजों ने पंत को कई बार गिरफ्तार किया। 1930 में पंत जी ने महात्मा गांधी के ’’नमक सत्याग्रह’’ में भाग लिया, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। अंग्रेजों ने उन्हें कई बार गिरफ्तार किया। भारत छोड़ो प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के लिए 1942 में उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया। श्री पंत द्वारा देश की आजादी तक विभिन्न आन्दोलनों में बढ़-चढकर हिस्सा लिया गया और इन आन्दोलनों को अंजाम तक पहुॅचाते हुए देश की आजादी में अपना सक्रिया योगदान दिया गया। उन्होंने बताया कि 7 जुलाई 1937 से लेकर 2 नवम्बर 1939 तक वे ब्रिटिश भारत में संयुक्त प्रान्त अथवा यूपी के पहले मुख्यमन्त्री बने। इसके बाद 1946 के चुनावों में कांग्रेस ने बहुमत हासिल किया और उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री बनाया गया। वे 1946 से 1947 तक संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) के मुख्यमंत्री रहे। उसके बाद 10 जनवरी, 1955 को उन्होंने भारत के गृह मंत्रालय का कार्यभार संभाला। गोविंद बल्लभ पंत के कार्यों को देखते हुए उनके नाम पर देश के कई अस्पताल, शैक्षणिक संस्थानों का नाम रखा गया है। हिंदी को राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित कराने में भी उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।