वक्फ बोर्ड बिल को लेकर संसदीय संयुक्त समिति की गुरुवार को हुई बैठक हंगामे के कारण खत्म हो गई. इस बिल को लेकर मुंबई के बड़े होटल में बैठक चल रही थी. बताया जा रहा है कि इस बैठक के दौरान विपक्षी दलों के सदस्य अपना विरोध जताने के बाद मीटिंग से उठकर बाहर चले गए. इस बैठक के दौरान शिवसेना के सांसद और सदस्य नरेश म्हस्के और टीएमसी के कल्याण बनर्जी के बीच जोरदार बहस हुई. बहस की शुरुआत उस वक्त हुई जब गुलशन फाउंडेशन की ओर से सुझाव पेश किए जाने के दौरान कल्याण बनर्जी ने विरोध जताया. इसके बाद बनर्जी ने उन्हें रोकने की कोशिश की. आपको बता दें कि गुलशन फाउंडेशन वक्फ बिल का समर्थन कर रहा था. वहीं, नरेश म्हस्के ने कल्याण बनर्जी को रोकने की कोशिश की. दोनों पक्षों में माहौल गरमाने के बाद समिति के अध्यक्ष ने भी उन्हें रोकने की कोशिश की. आखिरकार सभी विपक्षी दलों के प्रतिनिधी ने विरोध जताते हुए बैठक से बाहर निकल गए. इस बैठक के बाद शिवसेना सांसद नरेश म्हस्के ने कहा कि बैठक में गुलशन फाउंडेशन के लोग वक्फ बोर्ड बिल के बारे में बात कर रहे थे. इसी दौरान विपक्ष के नेता कल्याण बनर्जी का उनपर चिल्लाने लगे, उन्हें बैठक से बाहर निकालने की बातें करने लगे, उनका अपमान करने लगे. ये कहां से सही नहीं है. ये तरीका तो मैं महाराष्ट्र में चलने नहीं दूंगा. जो विटनेस यहां आए हैं उनको जीपीसी कमेटी ने बुलाया है. उनका अपमान करना, वो भी इसलिए क्योंकि वो वक्फ बोर्ड के फेवर में बोल रहे हैं. ये कौन सा तरीका है? विपक्षी पार्टी में फिलहाल स्पर्धा चल रही है कि ये बता सकें कि आखिर इस बिल के खिलाफ कौन कितना ज्यादा चिल्ला सकता है. मैं तो साफ कह देना चाहता हूं कि महाराष्ट्र में किसी भी मेहमान का अपमान करना, मैं ये सहन नहीं करूंगा. इसलिए मैंने उनका विरोध किया और उनसे कहा ये बैठक सिर्फ आपके चिल्लाने के लिए नहीं है. अगर आपको लगता है कि आप सीनियर नेता हैं और आप सिर्फ चिल्ला सकते हैं तो ये नहीं चलेगा. मेरा मानना है कि यहां किसी भी आने वाले विटनेस की रेस्पेक्ट करना हमारा काम है. हमें विटनेस की बात सुननी होगी. विपक्षी दल अगर किसी विटनेस का अपमान करेंगे तो हम वो सहन नहीं करेंगे. आपको बता दें कि वक्फ बिल को लेकर बनाई गई जेपीसी को कुछ समय पहले लाखों-करोड़ों की संख्या में पत्र मिले थे. और इसे लेकर जेपीसी के सदस्य निशिकांत दुबे ने चिंता व्यक्त की थी. समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल को पत्र लिखकर उन्होंने बताया था कि अब तक वक्फ समिति को एक करोड़ पच्चीस लाख पत्र मिले हैं. इसके पीछे उन्हें एक परेशान करने वाला ढर्रा नजर आ रहा है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. संभवत दुनियाभर में किसी संसदीय समिति को इतनी बड़ी संख्या में पत्र नहीं मिले होंगे और इस वजह से उनका मानना है कि इसकी जांच होना जरूरी है. कहा गया था कि ये देखा जाना जरूरी है कि आखिरकार सबसे अधिक पत्र कहां से आए, इनमें से भारत में से कितने हैं और विदेशों से कितने आए हैं. जेपीसी के मुताबिक इतनी बड़ी संख्या में पत्रों को देखते हुए यह कहना संभव नहीं है कि ये सभी पत्र सिर्फ भारत से आए हों. इस वजह से जरूरी है कि विदेशी ताकतों, संगठनों और व्यक्तियों ने जानबूझकर एक अभियान के तहत इस तरह के पत्रों की बाढ़ लगाई हो. निशिकांत दुबे ने अपने पत्र में कहा था इस्लामी कट्टरपंथियों की भूमिका का मुद्दा बड़ा और गंभीर है, जिन्होंने संसदीय समिति को पत्र भिजवाने के लिए अभियान चलाया. भारत घरेलू और विदेशी मोर्चे पर चरमपंथ का मुकाबला करता आया है. कई बार ऐसे संगठन जिन्हें विदेशों से मदद मिलती है देश को धार्मिक आधार पर बांटना चाहते हैं, लोकतंत्र को अस्थिर करना चाहते हैं और हमारी संसदीय प्रक्रिया को पटरी से उतारना चाहते हैं.
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