नई दिल्ली : कहीं ट्राइबल ज्यूलरी की बहार तो कहीं फैब्रिक ज्यूलरी का खुमार। झारखण्ड पवेलियन में आने वाले दर्शकों को झारखण्ड का हस्तशिल्प कुछ इसी तरह अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है। पवेलियन में दर्शक आदिवासी जनजातियों के हसली, कंगना, ठेला, पैरी, मटर लोला, मंडली, तरपत, बाजूबंद एवं झुप्पा सिकड़ी को काफी पसंद कर रहे हैं| सभी ज्यूलरी चांदी या तम्बा मिश्रित चांदी से निर्मित हैं| अन्तराष्ट्रीय व्यापार मेले में झारखण्ड पवेलियन अपनी विभिन्न विशेषताओं के चलते दर्शकों के बीच काफी लोकप्रियता हासिल कर रही है। झारखण्ड का हस्तशिल्प भी दर्शकों में काफी मशहूर हो गया है। झारखण्ड में लगभग 32 जनजातीय समूह हैं, संथाल, गोंड, बिहोरस, मुंडा, असुर जिनके अपनी पारम्परिक हस्तशिल्प और कलाएँ हैं। मेले में इन कलाओं को देखा और खरीदा जा सकता है।
झारखण्ड पवेलियन में रामगढ़ से आयीं गीता वर्मा ने बताया की इस वर्ष मेले में वह इसी तरह की ट्राइबल ज्युलारियां लेकर आयीं हैं और लोग इसे काफी पसंद कर रहे है| उन्होंने अपने पारंपरिक ज्युलारियों के बारे में बताया कि यह सामान्य ज्वेलरी से अलग होती हैं एवं अलग अलग भागों के लिए अलग अलग ज्वेलरी होती हैं| गीता वर्मा ने बताया कि इस वर्ष उनके पास 250 रु से लेकर 5000 रु तक के ट्राइबल ज्वेलरी उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि वो विगत 25 सालों से यही काम करती आ रही है।