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गांधी परिवार का गढ़, 31 सालों तक राज.अमेठी में बनने जा रहा इतिहास,

उत्तर प्रदेश का अमेठी लंबे समय से गांधी परिवार का पर्याय रहा है और 25 वर्षों में यह पहली बार होगा कि गांधी परिवार का कोई सदस्य इस लोकसभा सीट से चुनाव नहीं लड़ेगा. 1967 में एक निर्वाचन क्षेत्र के रूप में निर्माण के बाद से गांधी परिवार का गढ़ माने जाने वाले अमेठी का प्रतिनिधित्व तब से लगभग 31 वर्षों तक गांधी परिवार के सदस्य द्वारा किया गया है. पिछले आम चुनाव 2019 में कांग्रेस का किला टूट गया, जब भाजपा की स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को 55,000 से अधिक वोटों से हराया. इस बार राहुल गांधी रायबरेली सीट से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे, जबकि गांधी परिवार के करीबी किशोरी लाल शर्मा को अमेठी लोकसभा सीट से मैदान में उतारा गया है. शर्मा गांधी परिवार की ओर से दो प्रतिष्ठित निर्वाचन क्षेत्रों की देखभाल करने वाले प्रमुख व्यक्ति रहे हैं. पिछली बार इस निर्वाचन क्षेत्र से कोई गैर-गांधी 1998 में मैदान में था, जब राजीव गांधी और सोनिया गांधी के करीबी सहयोगी सतीश शर्मा ने चुनाव लड़ा था, लेकिन भाजपा के संजय सिंह से हार गए थे. 1999 में सोनिया गांधी ने सिंह को 3 लाख से अधिक वोटों से हराकर सीट दोबारा हासिल की. 2004 में सोनिया अपने बेटे राहुल गांधी के लिए रास्ता बनाने के लिए निकटवर्ती रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र में स्थानांतरित हो गईं. अमेठी उत्तर प्रदेश की 80 संसदीय सीटों में से एक है और इसमें पांच विधानसभा क्षेत्र तिलोई, सलोन, जगदीशपुर, गौरीगंज और अमेठी शामिल हैं. पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी इस निर्वाचन क्षेत्र में तीन मुख्य खिलाड़ी बनकर उभरे हैं. इसके पहले संसद सदस्य कांग्रेस के विद्या धर बाजपेयी थे जो 1967 में चुने गए और 1971 में अगले चुनाव में इस सीट पर रहे. 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के रवींद्र प्रताप सिंह पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी को हराकर इस सीट से सांसद बने. संजय गांधी ने अपना चुनावी बदला तीन साल बाद लिया, जब उन्होंने 1980 के आम चुनाव में सिंह को हरा दिया. उसी वर्ष बाद में, संजय गांधी की एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई और सीट खाली हो गई. 1981 में हुए उपचुनाव में, संजय के भाई राजीव गांधी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 2 लाख से अधिक वोटों से हराकर सीट से शानदार जीत हासिल की.

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