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कोहरे से सरसों में रोग एवं कीड़ो की प्रबल संभावना

कानपुर, 15 जनवरी

तिलहनी फसलों में सरसों का विशेष स्थान है। इस मौसम में माहू कीट या चेपा का सरसों की फसल में आक्रमण अधिक होता है। कीट के हमले से नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड घोल या नीम के तेल को तरल साबुन के साथ छिड़काव करना चाहिए।

यह जानकारी सोमवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के पादप रोग विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ एसके विश्वास ने देते हुए बताया कि आसमान में बादल घिरे रहने से इसका माहू कीट या चेपा का प्रकोप तेजी से होता है।

इस कीट के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.03 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। जैविक नियंत्रण के लिए फसल में दो प्रतिशत नीम के तेल को तरल साबुन के साथ (20 मिलीलीटर नीम का तेल एक मिलीलीटर तरल साबुन) में मिलाकर छिड़काव करें।

जाने कौन-कौन से रोग सरसों को करते है प्रभावित

डॉक्टर विश्वास ने रोगों के बारे में बताया कि सरसों की फसल में काला धब्बा रोग भी लगता है। माहू कीट एवं चेपा का प्रकोप अधिक होने की संभावना रहती है। यह सरसों की पत्तियों पर छोटे-छोटे गहरे भूरे गोल धब्बे बनते हैं। जो बाद में तेजी से बढ़ कर काले और बड़े आकार के हो जाते हैं।

उन्होंने बताया कि रोग की अधिकता में बहुत से धब्बे आपस में मिलकर बड़ा रूप ले लेते हैं। फल स्वरुप पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं। यह लक्षण फसल में दिखाई देते ही डाइथेन एम-45 का 0.2 प्रतिशत घोल के दो छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें।

विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी डॉ. खलील खान ने किसानों से अपील की है कि वे अपनी सरसों की फसल की निगरानी अवश्य करते रहें। क्योंकि आसमान में बादल छाए रहने से सरसों फसल में कीट और रोग आने की संभावना बढ़ जाती है। फसल पर रोग या कीट आने पर प्रबंधन करें, जिससे फसल को कीट और रोगों से बचाया जा सके।

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