अयोध्या, 21 नवंबर
अयोध्या में श्रीराम जन्म स्थान के अलावा अन्य मंदिरों पर भी मुगल आक्रमण हुए हैं। जिनमें कुछ प्रमुख मंदिरों की हम चर्चा करेंगे। श्रीराम जन्मभूमि के दक्षिण तरफ थोड़ी दूर पर सुमित्रा भवन नामक स्थान है। यहीं पर लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ था। हिजरी सन् 724 में इस स्थान पर महाराज विक्रमादित्य का बनवाया हुआ एक महल था, जो बाबर के आक्रमण में नष्ट हो गया। इस स्थान पर सुमित्रा भवन लिखा हुआ एक पत्थर भी गड़ा है।
दशरथ जी के आंगन में है सीताकूप
यह प्राचीन मन्दिर बहुत दिनों तक जीर्ण-शीर्ण अवस्था में रहा है। अयोध्या का इतिहास पुस्तक के अनुसार बस्ती शहर के पण्डित रामसुन्दर पाठक ने सैकड़ों साल पहले लगभग एक लाख रुपया खर्च करके बनवाया था। अयोध्या में मौजूद सीताकूप लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। इस कूप के बारे में वर्णित है कि यह कूप महाराजा दशरथ के आंगन में स्थित था। इसे ज्ञानकूप भी कहते हैं। यह स्थान जन्मभूमि से कुछ ही दूरी पर है। जब माता जानकी विवाह कर अयोध्या आईं तो इसी कूप की पूजा हुई थी। मान्यता है कि इस कुंआ का जल पीने से अनेकों असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं।
सैयद मसऊद सालार गाजी ने कनक भवन को तोड़ डाला
कनक भवन नामक स्थान महारानी कैकेयी का सोने का महल था, जिसे उन्होंने सीता को मुंह दिखाई में दे दिया था। यह श्रीराम जानकी का खास महल है। साधुओं में विशेषकर रसिक सम्प्रदाय के सन्तों में इस स्थान के प्रति अपूर्व निष्ठा है, यहां कोई न कोई अद्भुत घटना प्राय: घटित हुआ करती है। विक्रमादित्य के बनवाये हुए विशाल भवन कनक भवन को जब सैयद मसऊद सालार गाजी ने तोड़ डाला तब से यह स्थान भग्नावस्था में पड़ा था। इसे टीकमगढ़ की महारानी श्रीवृषभानु कुंवर ने एक सुन्दर विशाल भवन के रूप में बनवा दिया है, जो वर्तमान में मौजूद है।
कोप भवन में कैकेई ने मांगा था 14 साल का वनवास
हनुमानगढ़ी से रामजन्मभूमि जाते समय दाहिने स्थित है कोप भवन। माना जाता है कि महारानी कैकेयी के इसी स्थान पर कोप कर राजा दशरथ से श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास और भरत के लिए राजगद्दी मांगी थी। मंदिर में महारानी कैकेयी कोप में हैं और राजा दशरथ उदास बैठे हैं। जबकि राम और लक्ष्मण वन जाने की आज्ञा मांग रहे हैं। कनक भवन के दक्षिण तरफ रत्नसिंहासन, जिसे राजगद्दी भी कहते हैं।
माना जाता है कि इसी स्थान पर महाराजा रामचन्द्र का राज्याभिषेक हुआ था। इस स्थान पर तीन मूर्तियां गुप्ताकालीन सम्राट महाराज समुद्रगुप्त के समय से प्रतिष्ठित हैं। मुगल काल में इस स्थान पर भी अनेक हमले हुए हैं।
भईदग्धा पर हुआ था महाराजा दशरथ का अंतिम संस्कार
विल्वहरिघाट नामक स्थान से कुछ दूरी पर स्थित भईदग्धा स्थान पर ही महाराजा दशरथ का अंतिम संस्कार भारत जी द्वारा किया गया था। वहीं, विल्वहरिघाट अयोध्या से 15 किलोमीटर पूर्व दिशा में सरयू नदी के किनारे स्थित है, जहां एक शिवालय स्थित है। जिसमें महाराजा विक्रमादित्य काल की विल्वहरि महादेव की मूर्ति आज भी विराजमान है। इतिहास की पुस्तकों के मुताबिक यह मंदिर भी मुगल आक्रमणों से बच नहीं पाया।
महात्मा बुद्ध ने भी किया था अयोध्या में साधना
अयोध्या का इतिहास पुस्तक लाला सीताराम के अनुसार हनुमानगढ़ी से पूर्व एक कुंड स्थित है, जिसके दक्षिण तरफ बौद्ध चरण चिन्ह अंकित एक चबूतरा बना हुआ है। लोगों का मानना है कि इसी स्थान पर रहकर महात्मा बुद्ध ने सोलह सालों तक तपस्या किया था और अपने सिद्धांत यहीं निर्धारित किया था। एक दिन बुद्धदेव ने दातुन करके उसे दनुइन कुण्ड के निकट गाड़ दिया जो कुछ दिन बाद जमकर वृक्ष हो गया। वहीं वृक्ष बोधिवृक्ष कहलाया। कहा जाता है कि इसी कुण्ड के समीप एक खेत में एक कुएं की खुदाई हो रही थी, जिसमें प्राचीन काल की एक पाषाण मूर्ति का भग्नावशिष्ट निकला था। इसके साथ ही धर्मनगरी अयोध्या में ब्रह्मकुंड, श्रीराम-गुरूपीठ विद्यास्थली, तुलसी स्मारक भवन सहित अन्य कई तीर्थ स्थल हैं, जिनका संबंध त्रेतायुगकाल से है और आज भी लोगों की आस्था का केंद्र हैं।
अयोध्या में ऐसे अनेक स्थान है जो आज भी मुगल आक्रमणों की गवाही देते हैं। कालांतर में अनेक स्थानों का जीर्णोद्धार कराया गया है। इसमें प्रमुख तो भगवान त्रेतानाथ का मंदिर है। यह मंदिर राम की पैड़ी पर खंडहर की शक्ल में स्थित है। अब यह वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति बताई जाती है। लोगों की मान्यता है कि अश्वमेघ यज्ञ यहीं पर हुआ था।