स्ट्रीट वेंडरों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार ने पीएम स्ट्रीट वेंडर आत्मनिर्भर निधि (पीएम स्वनिधि) का आगाज 1 जून, 2020 को किया था। इस योजना के तहत 50,000 रुपए का ऋण बिना गारंटी और प्रतिभूति के स्ट्रीट वेंडर को दिया जाता है। यह राशि ऋणी को 3 किस्तों यथा 10,000, 20,000 और 20,000 के रूप में जारी की जाती है। योजना में पहली किस्त चुकाने के बाद ही दूसरी और तीसरी किस्त जारी करने का प्रावधान है ताकि ऋण खाता के गैर- निष्पादित आस्ति (एनपीए) में तब्दील होने की संभावना न्यून रहे। नियमित रूप से ऋण का भुगतान करने वाले ऋणियों को 7 प्रतिशत की ब्याज सब्सिडी देने का प्रावधान भी योजना में है। डिजिटल लेन देन करने वालों ऋणियों को हर साल 1200 रुपये तक कैशबैक दिया जाता है, ताकि उनके बीच डिजिटल लेन देन की संस्कृति विकसित हो। अब तक इस योजना के अंतर्गत 70 लाख ऋण खातों में तीनों किस्त का वितरण किया जा चुका है, जो राशि में 9100 करोड़ रुपए है। पीएम स्वनिधि को मूर्त रूप देने में सरकारी बैंक अहम भूमिका निभा रहे हैं। इस योजना के आगाज के समय सरकार ने पहली किस्त यानी 10,000 रुपए 50 लाख स्ट्रीट वेंडरों को वितरित करने का लक्ष्य रखा था। बाद में ज्यादा मांग की वजह से सरकारी बैंकों ने लक्ष्य से अधिक 106 प्रतिशत ऋण वितरित किए।
योजना की सफलता को देखते हुए सरकार ने पुराने लक्ष्य को संशोधित करके 50 लाख वेंडरों की जगह 63 लाख वेंडरों को पहली किस्त के रूप में ऋण वितरित करने का लक्ष्य निर्धारित किया जबकि दूसरी और तीसरी किस्त को मिलाकर दिसम्बर, 2023 तक 88.5 लाख वेंडरों को ऋण वितरित करने का लक्ष्य रखा गया। उम्मीद है कि जल्द ही बैंक इस लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे। पीएम स्वनिधि के लाभान्वितों में 75 प्रतिशत गैर-सवर्ण वर्ग के हैं, जिसमें पिछड़े वर्ग का प्रतिशत 44 है, जबकि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का प्रतिशत 22 है। लाभान्वितों में महिलाओं की संख्या 43 प्रतिशत है। इस योजना का लाभ लेने वालों में 26 वर्ष से 45 वर्ष की आयु वालों की संख्या दो तिहाई और 18 से 45 वर्ष की आयु वाले लोगों की संख्या तीन चौथाई है, जबकि योजना का लाभ लेने वालों की औसत आयु 41 वर्ष है। आंकड़ों से पता चलता है कि समाज के कमजोर वर्ग, महिलाएं, जवान और बूढ़े सभी इस योजना की मदद से सबल बनने की कोशिश कर रहे हैं। ऋण वितरण के बाद डेबिट कार्ड से खर्च करने वालों के प्रतिशत में 2021 के मुकाबले 2023 में 50 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। महज 2 सालों में औसत खर्च में 28,000 रुपए की बढ़ोतरी हुई है। पीएम स्वनिधि के लाभान्वितों द्वारा डेबिट कार्ड से 2021 में 51,672 रुपए खर्च किए गए जबकि 2022 में 60,974 रुपए, 2023 में 79,372 रुपए और चालू वित्त वर्ष में अगस्त महीने तक 32,555 रुपए खर्च किए गए हैं, जो दशार्ता है कि पीएम स्वनिधि के लाभार्थी धीरे-धीरे आत्मनिर्भर बन रहे हैं।
पीएम स्वनिधि योजना की वजह से स्ट्रीट वेंडर के खर्च करने की प्रवृत्ति और डिजिटल लेन देन के प्रति उनकी स्वीकृति में इजाफा हुआ है। अब वे डेबिट कार्ड की मदद से आॅनलाइन खरीददारी करने लगे हैं। कैशबैक, प्वॉइंट्स, डेबिट कार्ड से लेन देन करने से मिलने वाली छूट आदि का लाभ भी वे उठाने लगे हैं। यह भी देखा जा रहा कि जिसने 2023 में पीएम स्वनिधि के तहत ऋण लिया था, वे 2022 के मुकाबले वैसे लोगों, जिन्होंने कोई भी ऋण नहीं लिया था, उनसे ज्यादा खर्च कर रहे थे अर्थात उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई थी। नियमित रूप से खर्च करने वाले ऐसे लोगों का राष्ट्रीय औसत 22 प्रतिशत है। अभी 9 लाख से अधिक स्ट्रीट वेंडर ऋण वितरण के बाद नियमित रूप से खर्च कर रहे हैं। 63 प्रतिशत लोग, जिनकी आयु 25 वर्ष से कम है या फिर 60 वर्ष से अधिक है, ऋण की राशि वितरित किए जाने के बाद बुनियादी जरूरतों के इतर भी खर्च कर रहे थे। पीएम स्वनिधि डैशबोर्ड के अनुसार 5.9 लाख ऋणी बड़े शहरों में रहते हैं, जबकि अन्य दूसरे शहरों में। बनारस में 45 प्रतिशत ऋणी नियमित रूप से खर्च कर रहे हैं, जो देश भर में सबसे अधिक है। दूसरे स्थान पर बेंगलुरु , तीसरे स्थान पर चेन्नई और चौथे स्थान पर प्रयागराज है। डैशबोर्ड से यह भी पता चलता है कि पीएम स्वनिधि योजना से छोटे शहरों के लोग भी फायदा उठा रहे हैं।
इस प्रवृत्ति के सशक्त होने पर कामगारों की छोटे शहर से महानगर पलायन के प्रतिशत में कमी आएगी। प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत खाता खुलने के बाद लोग अमूमन अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे खर्च किया करते थे या फिर पैसों के अंतरण के लिए बैंक खाते का इस्तेमाल करते थे, लेकिन पीएम स्वनिधि योजना के तहत ऋण मिलने के बाद लोगों का कारोबार सशक्त हुआ है और लाभार्थी अब बुनियादी जरूरतों के अलावा इच्छानुसार दूसरे मदों में भी खर्च कर रहे हैं। प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत खोले गए खातों और पीएम स्वनिधि के तहत दिए जा रहे ऋण से क्रेडिट में 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पिछले 9 सालों में 30 प्रतिशत ऐसे लाभार्थी हैं, जिन्होंने पहली बार जमा खाता खुलवाया था या फिर पहली बार ऋण की सुविधा ली थी। प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत खोले गए खातों में नियमित तौर पर लेन देन करने वालों को ओवरड्राफ्ट की सुविधा भी दी गई थी, जिससे समाज के कमजोर वगरे को अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने में मदद मिली थी।
सुकन्या समृद्धि योजना के तहत 42 प्रतिशत नए खाते सिर्फ प्रधानमंत्री जन धन योजना की वजह से खुले। तदुपरांत, समाज के कमजोर वगरे को मुख्यधारा में लाने, समावेशी विकास को सुनिश्चित करने और कोरोना महामारी के दौरान कारोबारियों की मदद करने के लिए सरकार ने पीएम स्वनिधि, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, ईसीएलजीएस आदि को अमलीजामा पहनाया। आज इन योजनाओं की वजह से अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले 6 प्रतिशत कामगारों का औपचारिकरण किया जा चुका है, जिससे जरूरतमंद लोगों को और भी सुविधाएं देने की संभावना बढ़ी हैं, अर्थव्यवस्था में मजबूती आई है, और समावेशी विकास को बल मिला है। आने वाले सालों में सरकारी राजस्व में इजाफा होने की संभावना भी बढ़ी है।