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बढ़े आरक्षण सीमा तय करने के लिए संसद में कानून बनाओ

मो बरकतुल्लाह राही
अरवल,27जून:सामाजिक न्याय आंदोलन बिहार, इंक़लाबी कारवां और बहुजन स्कॉलर फोरम,अरवल के संयुक्त प्रतिरोध प्रदर्शन बाबा साहब अम्बेडकर प्रतिमा से चलकर भगत सिंह चौक होते हुए शहर भ्रमण के उपरांत प्रदर्शनकारियों ने वापस सब्जी बाजार के पास सभा आयोजित की. प्रतिरोध प्रदर्शन का नेतृत्व सुबोध यादव, राहुल कुमार ,अमन और गौतम राजवंशी कर रहें थें. प्रदर्शन में शामिल सैंकड़ों छात्र -नौजवान पेपर लीक उपरांत संस्थागत धांधली के बाद जारी NEET परिणाम को रद्द करने और दुबारा परीक्षा आयोजित करवाने की मांग कर रहें थें.
सुबोध यादव ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि बहुजन वर्ग के आरक्षण के खिलाफ पटना हाईकोर्ट का फैसला सामाजिक न्याय के खिलाफ हमला है.बहुजनों के लिए बढ़ा आरक्षण सीमा असंवैधानिक नहीं है बल्कि हाईकोर्ट का आरक्षण विरोधी फैसला असंवैधानिक है. EWS सवर्ण आरक्षण असंवैधानिक जरुर है जो बहुजनों के हकमारी के लिए बिना किसी सर्वेक्षण के सरकार और न्यायालय के द्वारा जारी है.जबकि बहुजन आरक्षण सीमा को बिहार सरकार के द्वारा जाति सर्वे से प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर जनसंख्या के मुताबिक बढ़ाया गया था.इसमें सदन के अंदर पक्ष और विपक्ष दोनों का समर्थन और सहमति भी प्राप्त था.भाजपा वाले भी बहुजनों के हितैषी बन रहें थें.लेकिन बहुजनों के आरक्षण के खिलाफ षड्यंत्रकारी भाजपाईयों के द्वारा ही न्यायालय के माध्यम से इसे रद्द करवाया गया है.बिहार सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चाहिए कि जिनके सहयोग से केंद्र की सरकार चल रही है.वह सरकार संसद में आरक्षण दायरे को बढ़ाने के लिए जाति जनगणना भी करवाए और  संसद में कानून बनाकर लागू भी करे.बढ़े आरक्षण सीमा को संविधान के नौवीं अनुसूची में शामिल कर बहुजन आरक्षण को संरक्षित भी करें.
बहुजन स्कॉलर फोरम के अमन और राहुल कुमार ने भी अपनी बात रखते हुए कहा कि सरकार छात्र -नौजवान, परिक्षार्थी और अभिभावकों के मन में सरकारी संस्थाओं के उपर खत्म होते विश्वास को भी बहाल करे.NTA के स्तर पर हो रहे भयानक धांधली से गरीब मेहनतकश घरों के बच्चे को बचाए और पेपर लीक में शामिल अधिकारियों और नेताओं के उपर अविलंब प्रभावी कार्रवाई करें.वहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त लेखिका अरुंधति राय और कश्मीर विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ शौकत हुसैन पर 14 साल पुराने सेमिनार और व्याख्यान में कहीं गई बातों के लिए यूएपीए लगाना जनता की आवाज़ बनने वाले लोगों के साथ दमनात्मक कार्रवाई है.हम लोकतंत्र बचाने की बात करते रहें हैं, इसलिए यूएपीए रद्द करने की मांग करते हैं.
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