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विशाखापट्टनम तट के पास भारत ने खोजा पाकिस्तानी पनडुब्बी ‘गाजी’ का मलबा

 भारतीय नौसेना ने हासिल की पानी के अंदर पनडुब्बी की खोज और बचाव क्षमता

– भारत की पेशकश के बाद कई मित्र देशों ने डीएसआरवी के प्रति दिखाई दिलचस्पी

नई दिल्ली, 23 फरवरी

भारतीय नौसेना ने पानी के अंदर पनडुब्बी की खोज और बचाव क्षमता हासिल की है। भारत ने अपने कई मित्र देशों के साथ अपनी पनडुब्बी बचाव क्षमताओं के लिए पेशकश की है, जिसमें कई देशों ने दिलचस्पी दिखाई है। नौसेना की डीप सबमर्जेंस रेस्क्यू व्हीकल (डीएसआरवी) यूनिट ने भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान 1971 में विशाखापट्टनम तट के पास डूबी पाकिस्तानी पनडुब्बी ‘पीएनएस गाजी’ का मलबा खोजा है। इसके अलावा जापानी पनडुब्बी आरओ-110 का मलबा भी पिछले 80 वर्षों से बंदरगाह शहर के पास समुद्र तल पर पड़ा हुआ है।

भारतीय नौसेना की विशाखापट्टनम में स्थित डीप सबमर्जेंस रेस्क्यू व्हीकल (डीएसआरवी) यूनिट के ऑफिसर इंचार्ज कैप्टन विकास गौतम ने बताया कि भारतीय नौसेना के पास समुद्र की गहराई में जलमग्न पोत की बचाव क्षमता है। इस प्रणाली में संकटग्रस्त पनडुब्बी का पता लगाने के लिए एक साइड स्कैन सोनार है, जो दूर से संचालित वाहन (आरओवी) की मदद से आपातकालीन कंटेनरों को तैनात करके पनडुब्बी के चालक दल को बचाता है। दरअसल, पनडुब्बी दुर्घटना में तीव्रता के साथ जीवन की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण है। इसलिए इस सिस्टम को फ्लाईअवे कॉन्फ़िगरेशन में खरीदा गया है जो वायु, भूमि, समुद्री जहाजों का उपयोग करके बेस से संकटग्रस्त पनडुब्बी के सटीक स्थान तक बचाव प्रणाली के तेजी से परिवहन की अनुमति देता है।

कैप्टन गौतम ने बताया कि 2018 में भारत ने डूबे हुए जहाजों और पनडुब्बियों का पता लगाने और आवश्यकतानुसार बचाव अभियान चलाने के लिए गहरे जलमग्न बचाव वाहन (डीएसआरवी) तैनात करने की क्षमता प्राप्त की। दुर्घटनाग्रस्त पनडुब्बी को बचाने की यह सुविधा कुछ चुनिन्दा देशों के पास ही है लेकिन भारतीय डीएसआरवी प्रौद्योगिकी और क्षमताओं के मामले में नवीनतम है। पनडुब्बी आकस्मिकता से निपटने के लिए भारत को यह प्रौद्योगिकी ब्रिटेन की कंपनी जेम्स फिशेज डिफेंस ने आपूर्ति की है, जो भारत के पश्चिमी और पूर्वी तट पर स्थापित की गई हैं। इस प्रौद्योगिकी में विभिन्न प्रकार की पनडुब्बियों को समुद्र के भीतर खोजने के साथ ही कर्मियों को बचाकर पनडुब्बी से डीएसआरवी में सुरक्षित स्थानांतरण किया जा सकता है।

भारतीय नौसेना की पनडुब्बी बचाव इकाई के वरिष्ठ अधिकारी ने भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान 1971 में विशाखापट्टनम तट के पास डूबी पाकिस्तानी पनडुब्बी गाजी के मलबे की खोज का खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि 53 साल पहले खोई हुई इस पनडुब्बी का हमने डीएसआरवी से पता लगाया है। यह खोज विशाखापट्टनम तट से कुछ ही समुद्री मील की दूरी पर की गई है। संयुक्त राज्य अमेरिका से पट्टे पर ली गई पीएनएस गाज़ी ने दिसंबर, 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान रहस्यमय परिस्थितियों में डूबने तक पाकिस्तानी नौसेना के लिए प्रमुख पनडुब्बी के रूप में काम किया था, जिसमें सवार सभी 93 कर्मियों की जान चली गई थी।

उन्होंने बताया कि हासिल की गई इन क्षमताओं को अज्ञात समुद्री धाराओं के मानचित्रण के लिए महत्वपूर्ण उपकरण माना जाता है, जो भारतीय नौसेना के पानी के नीचे प्लेटफार्मों के लिए उन्नत नेविगेशन समर्थन प्रदान करता है। लगभग 16 मीटर की औसत गहराई के कारण विशाखापट्टनम उन कुछ बंदरगाह शहरों में से एक है, जहां समुद्र में चलने वाले जहाजों के लिए गहरे प्रवेश द्वार हैं। यहां की प्राकृतिक खूबियों से पनडुब्बियों को तट के नजदीक तक संचालित किया जा सकता है। इसी अनूठी विशेषता के कारण भारत के साथ युद्ध के दौरान पाकिस्तानी नौसेना की पनडुब्बी पीएनएस गाजी विशाखापट्टनम तट के पास गश्त करने आई थी और डूबकर खो गई थी।

हालांकि, भारत विशाखापट्टनम तट पर पाकिस्तानी पनडुब्बी को डुबोने के लिए अपने आईएनएस ‘राजपूत’ को श्रेय देता है लेकिन पाकिस्तान इसकी वजह आंतरिक विस्फोट और विशाखापट्टनम बंदरगाह की सुरक्षा के लिए तैनात भारतीय बारूदी सुरंगों को बताता है। उन्होंने बताया कि पीएनएस गाजी के अलावा जापानी पनडुब्बी आरओ-110 का मलबा भी पिछले 80 वर्षों से बंदरगाह शहर के पास समुद्र तल पर पड़ा हुआ है। यह पनडुब्बी द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रॉयल इंडियन नेवी के एचएमआईएस जमना और ऑस्ट्रेलियाई नौसेना के जहाज इप्सविच से जारी किए गए डेप्थ चार्ज के कारण डूब गई थी।

उन्होंने बताया कि मौजूदा समय में यह सुविधा भारत के साथ-साथ अमेरिका, चीन, रूस और सिंगापुर के अलावा 12 देशों के पास है। पनडुब्बी क्षमता वाले लगभग 40 देशों में से भारत सबसे आगे है। भारत ने पनडुब्बी बचाव कार्यों के लिए स्वदेशी रूप से दो डाइविंग सपोर्ट जहाज (डीएसवी) निर्मित किये हैं, जिन्हें विशाखापट्टनम के हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड (एचएसएल) में जल्द शामिल किये जाने की उम्मीद है। समुद्र में 650 मीटर की गहराई तक काम करने में सक्षम यह उन्नत तकनीक क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा के प्रति भारतीय नौसेना की प्रतिबद्धता को उजागर करती है।

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